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Showing posts from 2018

वेदांग शिक्षा २

स्थानप्रकरणम् तावत्  तत्र स्थानम्।१। कण्ठ्याः  अकवर्गहविसर्जनीयाः ।२ एकेषां हविसर्जनियावुरस्याः ।३। जिह्व्यो जिह्वामूलीयः।४। ऋवर्ण कवर्गश्च जिह्व्यः एकेषाम् ।५। एकेषां कवर्गावर्णानुस्वारजिह्वामूलीया जिह्वया।६। एके सर्वमुखस्थानमवर्णमिति।७। एके कण्ठ्यानास्यमात्रानिति।८।  तालव्याः इचवर्गरशाः।९। मूर्धन्याः ऋटवर्गरषाः।१०। दुःस्पुष्टः अपि।११। रेफो दन्तमूलीस्थानमेकेषाम्।१२। दन्त्याः लृतवर्गलसाः।१३। एकेषां दन्तमूलस्तु तवर्गः।१४। दन्त्योष्ठ्यो वकारः।१५। एकेषाम् सृक्किणीस्थानम्।१६। ओष्ठ्याः उपूपध्मानीया।१७। नासिक्याः अनुस्वारयमाः।१८। नासिक्यः अपि।१९। एकेषां कण्ठ्यनासिक्यमनुस्वारम्।२०। एकेषां यमाश्च नासिक्य जिह्वामूलीयः।२१। कण्ठतालव्यौ ए ऐ।२२। कण्ठोष्ठ्यौ ओ औ।२३। स्वस्थाननासिकास्थानाः ङञणनमाः।२४। सन्ध्यक्षराणि द्विवर्णानि।२५। सरेफ ऋवर्णः। २६। सलकार लृवर्णः।२७। एवमेतानि स्थानानि।२७। करण प्रकारणम् करणं अपि। १। जिह्व्यतालव्यमूर्धन्यदन्त्यानां करणं जिह्वा। २। जिह्व्यानां जिह्वामूलेन। ३। तालव्यानां जिह्वामध्येन। ४। मूर्धन्यानां जिह्वोपाग्रेण। ५। करणं वा जिह्वाग्राधः। ६। दन्तानां जिह...

वेदांग शिक्षा 1

अथ वर्णाः।१। स्थानकरणप्रयत्नपरेभ्यो त्रिषष्टिः वर्णाः।२। चतुःषष्टिः एकेषाम्। ३। क्रम प्रकरणम् अथातो वर्ण क्रमः।१। तत्र स्वराः प्रथमम्।२। अ आ आ३।३। इ ई ई३।४। उ ऊ ऊ३।५। ऋ ॠ ॠ३ ।६। ऌ ॡ३।७। अथ सन्ध्यक्षराणि।७। ए ए३।८। ऐ ऐ३।९। ओ ओ३।१०। औ औ३।११। इति सन्ध्यक्षराणि।१२। इति स्वराः।१३। अथ व्यञ्जनानि।१४। तत्र स्पर्शाः प्रथमम्।१५। क ख ग घ ङ कवर्गः।१६। च छ ज झ ञ चवर्गः।१७। ट ठ ड ढ ण टवर्गः।१८। त थ द ध न तवर्गः।१९। प फ ब भ म पवर्गः।२०। इति स्पर्शाः।२१। अथान्तःस्थाः।२२। य र ल व।२३। इति अन्तःस्थाः।२४। अथोष्माणः।२५। श ष स ह।२६। अथोयोगवाहाः।२७। ᳲक जह्वामुलियः।२८। ᳲप उपध्मानीयः।२९। इति उष्माणः। ३०।  अः विसर्जनीयः।३१। अं अनुस्वारः।३२। कुँ खु़ँ खु़ँ घुँ यमाः।३३। एते वर्णास्त्रिषष्टिः।३४। हुँ नासिक्य एकेषाम्।३५।  इति अयोगवाहाः। ३६। ळ दुःस्पृष्टः एके।३७। चतुःषष्टिरित्येके।३८।  इति व्यञ्जनानि। ३९। एष क्रम वर्णानामिति।४०।

अग्निहोत्र विधि

अग्निहोत्र विधि  अव हम नित्यकर्म का तृतीय प्रश्न का उत्तर देते है। पञ्चभू संस्कार  पञ्चभू संस्कार जिसे प्राचीन गृह सूत्र मे लक्षणवृत भी कहते है उसको सभी संस्कारादि मै अग्नि स्थापना करना से पूर्व करना चाहिये। यह इसप्रकार है : १. यज्ञकुण्ड में स्थित धूलि को साफ करना।  २. कुण्ड को गोबर और जल से लीपना।  ३. व्रज (जो  काष्ठ का खंड होता है ) या उसके आभाव मे स्रुवमुल से यज्ञकुण्ड के बरावर तीन रेखाये पूर्व से उत्तर तक खींचना चाहिये।  ४.  व्रजसे खींची गई रेखाओं से मिट्टी को अङ्गुष्ठा और अनामिका से  अलग करे।  ५. जल से यज्ञकुण्ड को छिडके।  अग्निहोत्र पात्र   १. स्रुव -२ २. आज्यस्थाली -२  ३. प्रोक्षणी -१  ४. प्रणिता -१  ५. पञ्च पात्र और आचमनी-२ (यह गृह के जितना लोक होंगे उतने लोक केलिये एक एक ) ६. अग्निपात्र -१  ७. चिमिटा -१  ८. वज्र -१  ९. आसान -२ (यह गृह के जितना लोक होंगे उतने लोक केलिये एक एक ) १०. कुशा  ११. जल  १२. आज्य  १३...