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Showing posts from 2019

बलि वैश्वदेव विधि

जब पाकशाला में अन्न सिद्ध हो जाने पर उसमे से खट्टा, लवणान्न, क्षार अन्न, दालें को छोडकर शेष अन्न को हाथ की ब्रह्मतीर्थ से चूल्हे की अग्नि में निम्न  मन्त्र से आहतियां दैं- ॐ अ...

ब्रह्म यज्ञ

ब्रह्म यज्ञ पञ्च महायज्ञ में प्रथम हैं। यह दो भागों में विभाजित है - १. सन्ध्योपासना २. स्वाध्याय (वेद आदि सत् शास्त्र का अध्ययन करना। इनमें सन्ध्योपासना को प्रथम करना चाहिए। ओर स्वाध्याय को अग्निहोत्र के पश्चात करना चाहिए। स्वाध्याय शब्द का अर्थ :-   इस का दो प्रकार के अर्थ हैं। १. स्व + अध्याय (स्वस्य अध्ययनम्) अर्थात अपने आप का अध्ययन करना। २. सु +आ+अध्याय अर्थात सब उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन-मनन करना। प्रथम प्रकार का स्वाध्याय सन्ध्योपासना के अन्तर्गत आ जाता है। दूसरी प्रकार का स्वाध्याय वेद आदि उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन-मनन हो जाता है। स्वाध्याय से ज्ञान की प्राप्ति और वृद्धि होता है।

सन्ध्योपासन विधि

सन्ध्योपासना मनुष्यमात्रके लिये परम आवश्यक कर्म है। इसके विना पञ्चमहायज्ञ करने की योग्यता नहीं आती। अतः प्रत्येक मनुष्य को सन्ध्या करना आवश्यक है। स्नान के पश्चात दो वस्त्र धारण करके पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की ओर मुख कर आसन पर वैठ जाये। आसन की ग्रन्थि आपकी मुख की दिशा से ९०ं कोण मैं रहना चहिये। सन्ध्याके लिये पात्र १. आसन १ २. लोटा प्रधान जलपात्र १ ३. आचमनी १ ४. पञ्चपात्र १ ५. प्रक्षालन पात्र १ सन्ध्योपासना आरम्भ करने से पूर्व उसकी तैयारी के लिए निम्न कार्य को करनी चहियें - १. आचमन (विना मन्त्र के) २. प्राणायाम (विना मन्त्र के)                     शिखाबन्धन अव गायत्रीमन्त्र का पाठ करके सुपथगामी बुद्धि की प्रार्थना करता हुआ शिखाबन्धन करें। सावित्री मन्त्रः, विश्वामित्र ऋषिः, गायत्री छन्दः, सविता देवता, शिखाबन्धने विनियोगः ॐ तत्स॑वि॒तुर्वरे॑ण्यं॒ भर्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि। धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒द॑यात् ॥ ऋ. १० ।९। ४ ॥            ...