सन्ध्योपासना मनुष्यमात्रके लिये परम आवश्यक कर्म है। इसके विना पञ्चमहायज्ञ करने की योग्यता नहीं आती। अतः प्रत्येक मनुष्य को सन्ध्या करना आवश्यक है। स्नान के पश्चात दो वस्त्र धारण करके पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की ओर मुख कर आसन पर वैठ जाये। आसन की ग्रन्थि आपकी मुख की दिशा से ९०ं कोण मैं रहना चहिये। सन्ध्याके लिये पात्र १. आसन १ २. लोटा प्रधान जलपात्र १ ३. आचमनी १ ४. पञ्चपात्र १ ५. प्रक्षालन पात्र १ सन्ध्योपासना आरम्भ करने से पूर्व उसकी तैयारी के लिए निम्न कार्य को करनी चहियें - १. आचमन (विना मन्त्र के) २. प्राणायाम (विना मन्त्र के) शिखाबन्धन अव गायत्रीमन्त्र का पाठ करके सुपथगामी बुद्धि की प्रार्थना करता हुआ शिखाबन्धन करें। सावित्री मन्त्रः, विश्वामित्र ऋषिः, गायत्री छन्दः, सविता देवता, शिखाबन्धने विनियोगः ॐ तत्स॑वि॒तुर्वरे॑ण्यं॒ भर्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि। धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒द॑यात् ॥ ऋ. १० ।९। ४ ॥ ...