ब्रह्म यज्ञ पञ्च महायज्ञ में प्रथम हैं। यह दो भागों में विभाजित है - १. सन्ध्योपासना २. स्वाध्याय (वेद आदि सत् शास्त्र का अध्ययन करना।
इनमें सन्ध्योपासना को प्रथम करना चाहिए। ओर स्वाध्याय को अग्निहोत्र के पश्चात करना चाहिए।
इनमें सन्ध्योपासना को प्रथम करना चाहिए। ओर स्वाध्याय को अग्निहोत्र के पश्चात करना चाहिए।
स्वाध्याय शब्द का अर्थ :- इस का दो प्रकार के अर्थ हैं।
१. स्व + अध्याय (स्वस्य अध्ययनम्) अर्थात अपने आप का अध्ययन करना।
२. सु +आ+अध्याय अर्थात सब उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन-मनन करना।
प्रथम प्रकार का स्वाध्याय सन्ध्योपासना के अन्तर्गत आ जाता है। दूसरी प्रकार का स्वाध्याय वेद आदि उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन-मनन हो जाता है।
स्वाध्याय से ज्ञान की प्राप्ति और वृद्धि होता है।
१. स्व + अध्याय (स्वस्य अध्ययनम्) अर्थात अपने आप का अध्ययन करना।
२. सु +आ+अध्याय अर्थात सब उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन-मनन करना।
प्रथम प्रकार का स्वाध्याय सन्ध्योपासना के अन्तर्गत आ जाता है। दूसरी प्रकार का स्वाध्याय वेद आदि उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन-मनन हो जाता है।
स्वाध्याय से ज्ञान की प्राप्ति और वृद्धि होता है।
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