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ब्रह्म यज्ञ

ब्रह्म यज्ञ पञ्च महायज्ञ में प्रथम हैं। यह दो भागों में विभाजित है - १. सन्ध्योपासना २. स्वाध्याय (वेद आदि सत् शास्त्र का अध्ययन करना।
इनमें सन्ध्योपासना को प्रथम करना चाहिए। ओर स्वाध्याय को अग्निहोत्र के पश्चात करना चाहिए।
स्वाध्याय शब्द का अर्थ :-  इस का दो प्रकार के अर्थ हैं।
१. स्व + अध्याय (स्वस्य अध्ययनम्) अर्थात अपने आप का अध्ययन करना।
२. सु +आ+अध्याय अर्थात सब उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन-मनन करना।
प्रथम प्रकार का स्वाध्याय सन्ध्योपासना के अन्तर्गत आ जाता है। दूसरी प्रकार का स्वाध्याय वेद आदि उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन-मनन हो जाता है।
स्वाध्याय से ज्ञान की प्राप्ति और वृद्धि होता है।

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अग्निहोत्र विधि  अव हम नित्यकर्म का तृतीय प्रश्न का उत्तर देते है। पञ्चभू संस्कार  पञ्चभू संस्कार जिसे प्राचीन गृह सूत्र मे लक्षणवृत भी कहते है उसको सभी संस्कारादि मै अग्नि स्थापना करना से पूर्व करना चाहिये। यह इसप्रकार है : १. यज्ञकुण्ड में स्थित धूलि को साफ करना।  २. कुण्ड को गोबर और जल से लीपना।  ३. व्रज (जो  काष्ठ का खंड होता है ) या उसके आभाव मे स्रुवमुल से यज्ञकुण्ड के बरावर तीन रेखाये पूर्व से उत्तर तक खींचना चाहिये।  ४.  व्रजसे खींची गई रेखाओं से मिट्टी को अङ्गुष्ठा और अनामिका से  अलग करे।  ५. जल से यज्ञकुण्ड को छिडके।  अग्निहोत्र पात्र   १. स्रुव -२ २. आज्यस्थाली -२  ३. प्रोक्षणी -१  ४. प्रणिता -१  ५. पञ्च पात्र और आचमनी-२ (यह गृह के जितना लोक होंगे उतने लोक केलिये एक एक ) ६. अग्निपात्र -१  ७. चिमिटा -१  ८. वज्र -१  ९. आसान -२ (यह गृह के जितना लोक होंगे उतने लोक केलिये एक एक ) १०. कुशा  ११. जल  १२. आज्य  १३...
अथ वर्णसमाम्नाय: प्रथमः अध्यायः प्रथमः पादः अथातो वर्णक्रमः ॥१॥ तत्र: स्वराः प्रथमम् ॥२॥ अ आ आ३ ॥ ३॥ इ ई ई३  ॥४॥ उ ऊ ऊ३ ॥५॥ ऋ ॠ ॠ३ ॥६॥  ऌ ॡ३  ॥७॥ अथ सन्ध्यक्षराणि ॥८॥ ए ए३ ॥९॥ ऐ ऐ३  ॥१०॥ ओ ओ३ ॥११॥ औ औ३  ॥१२॥ इति स्वराः  ॥१३॥ अथ व्यञ्जनानि  ॥१४॥ कखगघङा कवर्ग:  ॥१५॥ चछजझञा चवर्ग:  ॥१६॥ टठडढणा टवर्ग:  ॥१७॥ तथदधना तवर्ग:  ॥१८॥ पफबभमा पवर्ग:  ॥१९॥ इति स्पर्शा:   ॥२०॥ अथान्त:स्था:  ॥२१॥ यरलवा  ॥२२॥ अथोष्माण:  ॥२३॥ शषसहा  ॥२४॥ अथायोगवाहा:  ॥२५॥ अ: विसर्जनीय:  ॥२६॥ ᳲक जिह्वामुलीय:  ॥२७॥ ᳲप उपध्मानीय:  ॥२८॥ अ॰ अनुस्वार:  ॥२९॥ कुँ खुँ गुँ घुँ यमा:  ॥३०॥ एते त्रिषष्टिवर्णा:  ॥३१॥ हुँ नासिक्य:  ॥३२॥ दुःस्पृष्टः ळकारः एकेषाम् ॥३३॥ एते चतुर्षष्टि:  ॥३४॥ पञ्चषष्ठिः एकेषाम् ॥३५॥ द्वितीय: पाद: वर्ण: कारोत्तोर वर्णाख्य  ॥१॥ अकारव्यवेतो व्यञ्जनानाम् ॥२॥ न अयोगवाहा: ॥ ३॥ एफस्तु रस्य  ॥४॥ अकारो व्यञ्जनानाम् ॥५॥ निर्देश इतिना  ।॥६॥ स्वरैरपि...

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