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Showing posts from 2017

गृह वास्तु का ९ सूत्र

हम सभी जानते है की  वास्तु विद्या  भारतीय शिल्प शास्त्र का एक अङ्ग है । वास्तु विद्या भी अनेक प्रकार के है यथा गृह वास्तु, प्रसाद वास्तु, मन्दिर वास्तु, दूर्ग वास्तु, नाट्य शाला वास्तु, यान वास्तु इत्यादि । उसमे गृह वास्तु वास्तु विद्या का एक अङ्ग है । जव हम गृह वास्तु का अध्ययन करते है तो हमे इससे आठ मुख्य सूत्र ओर एक गौण सूत्र प्राप्त होते है । यथा   १.   परिवेश का गृह पर प्रभाव ।    २.  निर्माण क्षेत्र स्थल का भौतिक स्थिति ।   ३.  पञ्च महाभूतों का गृह पर प्रभाव ।   ४.    गृह निर्माण सौदर्य का परिरक्षण ।  ५.    जीवन कि आवश्यकता का गृह मे रूप परिकल्पना ।  ६.     भू भौतिक शक्ति का गृह पर प्रभाव ।   ७.    देश-काल-पात्र का परिगणन ।   ८.     भूगोल के ऊपर आकशिय ग्रहौं का प्रभाव । यह आठ मुख्य सूत्र है । और एक गौण सूत्र भी है । 9.        ९.  गृह मे निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर आकशिय ग्र...

वास्तु और पुरुषार्थ चतुष्ठय

आजकाल वास्तु की चर्चा काफी ज्यादा हो रहा है। लोगो वास्तु के अनुसार गृह निर्माण करना पसंद करते है। वास्तु की पुस्तक की पुस्तक दुकानो पर काफी ज्यादा उपलब्ध हो रहा है। गणमाध्यम चाहे वो इलेक्ट्रॉनिक हो या समाचार पत्र वास्तु के ऊपर चर्चा हो रहा है। ऐसा लग रहा है हम वास्तु युग मे आ चुके है।  प्रश्न उठता है वास्तु का अर्थ क्या है ? और उसका मनुष्य जीवन के साथ क्या सम्पर्क है ? मैने कुछ लोगों को पूछा वास्तु कहने से आप क्या समझ ते है ? उनका जो उत्तर था वो इस तरहा से था  गृह के वस्तुओं को दिशा के अनुसार रखना या कोई दीवार को तोड़फोड़ करना या कोई यन्त्र दीवारों पर लगाना आदि को वास्तु कहते है । क्या सच्च मे इसको वास्तु कहते है ! इसको वास्तु नहीं कहते। हाँ इतना जरूर कहूँगा वास्तु के नाम ज्योतिषियों ने लोगो की मन मे भय की सृस्टि करके रुपया कमाने का अच्छा उपाय कर रखे है। जवतक हम वास्तु क्या है इसका सही जानकारी ना हो जाए और वास्तु का मनुष्य जीवन के साथ क्या सम्पर्क है, इसकी सही जानकारी ना हो जाए, तवतक हम इस वास्तु रूपी अन्धकूप मे पड़े रहेंगे। वास्तु शब्द संस्कृत भाषा से ...

उपस्कारक ग्रंथ

इस ब्लॉग के हर एक पोस्ट मे मैने उपस्कारक ग्रंथ सूचि दे दिया है। मेरे वहुत सारे मित्र पूछ रहे है इस ब्लॉग के लिखने के लिए किस किस पुस्तक का सहायता लिया हूँ। मैने जिस जिस पुस्तक से अभी तक सहायता लिया हूँ, उसका सूची इसप्रकार है।   आयुर्वेदीय हितोपदेश : वैद्य रणजीत राय देसाई, श्री वैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्रा. लि., नागपुर, संस्करण २००५ ई। काश्यपीयकृषिपद्धति : कश्यप मुनि , व्यख्याकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू, चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी, संस्करण २०१३ ई।  गृहवास्तु प्रदीप : अज्ञात कृत, व्याख्याकार  डॉ. शैलजा पाण्डेय, चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी, संस्करण २०१० ई। गुहरत्नभूषण : श्री मातृप्रसाद पाण्डेय, ज्योतिष प्रकाशन, वाराणसी, संस्करण २००९ ई।  ज्योतिष रत्नमाला: श्रीपति भट्टाचार्य,  डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू, परिमल पब्लिकेशंस, दिल्ली, संस्करण २००४ ई। ज्यातिषवृतशतं : महेश्वरोपाध्याय कृत, सम्पादका एबं अनुवादक डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू, चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी, संस्करण २००८ ई। ज्यातिषसार : ज्योतिर्विद शुकदेव व...

गृहारम्भ तिथि,पक्ष और वार विचार

पक्ष के अनुसार गृहारम्भ फल विचार   अब हम पक्ष के अनुसार गृहरम्भ का फल विचार करेंगे।   हम सभी जानते है चंद्र मास मे दो पक्ष होता है। प्रथम शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष। वास्तुगोपाल का लेखक के अनुसार और देवीपुराण का लेखक के अनुसार शुक्ल पक्ष मे गृहरम्भ का फल शुभ होता है। किन्तु कृष्ण पक्ष मे गृहरम्भ का फल चौरभय होता है। परन्तु राजमार्ताण्ड के लेखक राजा भोज के अनुसार शुक्ल पक्ष एकादशी से पूर्णिमा पर्यन्त गृहरम्भ का फल शुभ होता है। उसका कारण इस प्रकार है शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से पञ्चमी पर्यन्त चन्द्रमा निर्वल होता है। इस कारण गृहरम्भ का फल अशुभ होता है। उसी प्रकार शुक्ल पक्ष पञ्चमी से सप्तमी पर्यन्त चन्द्रमा हीनवली होता है। और शुक्ल पक्ष अष्टमी से दशमी पर्यन्त चन्द्रमा मध्यवली होता है। और शुक्ल पक्ष एकादशी से पूर्णिमा पर्यन्त चन्द्रमा वलबान होता है। इसीकारण शुक्ल पक्ष एकादशी से पूर्णिमा पर्यन्त गृहरम्भ का फल शुभ होता है। किन्तु नारद संहिता का लेखक के अनुसार शुक्ल पक्ष  के एकादशी से पूर्णिमा पर्यन्त और कृष्ण पक्ष के प्रत...