हम सभी जानते है की वास्तु विद्या भारतीय शिल्प शास्त्र का एक अङ्ग है । वास्तु विद्या भी अनेक
प्रकार के है यथा गृह वास्तु, प्रसाद वास्तु, मन्दिर वास्तु, दूर्ग वास्तु, नाट्य
शाला वास्तु, यान वास्तु इत्यादि । उसमे गृह वास्तु वास्तु विद्या का एक
अङ्ग है । जव हम गृह वास्तु का अध्ययन करते है तो हमे इससे आठ मुख्य सूत्र ओर एक
गौण सूत्र प्राप्त होते है । यथा
१. परिवेश का गृह पर प्रभाव ।
२.
निर्माण क्षेत्र स्थल का भौतिक स्थिति ।
३.
पञ्च महाभूतों का गृह पर प्रभाव ।
४. गृह निर्माण सौदर्य का परिरक्षण ।
५. जीवन कि आवश्यकता का गृह मे रूप परिकल्पना ।
६. भू भौतिक शक्ति का गृह पर प्रभाव ।
७. देश-काल-पात्र का परिगणन ।
८. भूगोल के ऊपर आकशिय ग्रहौं का प्रभाव ।
यह आठ मुख्य सूत्र
है । और एक गौण सूत्र भी है ।
9. ९. गृह मे निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर आकशिय ग्रहौं का
प्रभाव ।
प्रश्न उठता है कि
जो गौण सूत्र है वह मुख्य सूत्र संख्या 8 का ही एक भाग है ! क्योकि खौगलिय ग्रहौं जो भूगल के उपर जव प्रभाव डालता है तो
क्या वह गृह मे निवास करने वाले प्रतेक परिवार के सदर्स्य के उपर प्रभाव नहि डालते
होगे ? अगर कहे कि प्रभाव डालता है तो अलग से सूत्र लिखने कि क्या जरुरत
? अगर यह कहे कि प्रभाव नहि डालता है तो गौण सूत्र लिखने कि क्या
आवश्यकता ?
उपर लिखा हुआ प्रश्न का उत्तर
देते है । भाव को स्पष्ट करने के लिये कभि कभि एक सूत्र को दो भाग मे वाटा जाता है
। उसमे जो मुख्य प्रसङ्ग के साथ हो तो वह मुख्य सूत्र कहलाता है । ओर जो मुख्य
प्रसङ्ग से अलग है वह गौण सूत्र कहलाता है । इसलिये अर्थ को स्पष्ट करने के लिये
सूत्र संख्या 8 को दो भाग मे वाट कर दिया गेया है।
1) भूगोल के उपर
आकशिय ग्रहौं का प्रभाव अर्थात गृह और उसके भूगलिक स्थिति के उपर आकशिय ग्रहौं का
प्रभाव ।
2) गृह मे निवास
करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर आकशिय ग्रहौं का प्रभाव ।
किन्तु पहला भाग
मुख्य विषय के साथ सम्पक है इसलिये वह मुख्य सूत्र हूआ । और दूसरा भाग इस विषय से
अलग है इसलिये वह गौण सूत्र हूआ ।
एक दूसरा प्रश्न उठता
है कि गृह वास्तु का 9
सूत्र सभी वास्तु
मे उपयोग होता है ?
उपर लिखा हुआ प्रश्न का उत्तर
देते है कि गृह वास्तु का 9 सूत्र सभी वास्तु मे उपयोग नहिं होता है । प्रसङ्ग के अनुसार कुच्छ सूत्र कम या अधिक होता
हैं । यह विषय प्रसङ्ग से अलग है इसलिये यहाँ हम उसको यहाँ विचार नहि करंगे ।
लेकिन फिर कभि हम इसका विचार करेङ्गे ।
अव चलते है गृह वास्तु का 9
सूत्र का संक्षेप मे विचार
करते है ।
१. परिवेश का गृह पर प्रभाव :- आज हम 21वि शताव्द्धि
मे रहते है हमे थोडा वहुत परिवेश का मन्युष्य के उपर क्या प्रभाव होता है यह
हम सव जानते हैं । किन्तु परिवेश का गृह पर भी प्रभाव पडता है यह वहुत कम लोक ही जानते है । जैसे आच्छा परिवेश मे एक बालक का आच्छा स्वभाव और चरित्र बनता है । और खराव परिवेश मे एक बालक का स्वभाव और
चरित्र खराव बनता है । उसि तरहा शान्त और स्वच्छ परिवेश मे गृह का
वातावरण शान्त और सुखमय लगता है । और कोलाहल और अशान्त परिवेश मे गृह का वातावरण
अशान्त और असुखमय लगता है । इसलिये हमारे प्राचिन वास्तुकार ने मन्दिर के पाश, राज रास्ता इत्यादि
के पाश गृह वनाना मना किया
गेया है ।
पश्न उठता है कि जव हम 21वि शताव्द्धि मे
रहते है, तो क्या प्राचिन वास्तुकार के मतों को मानना जरूरी है ? अगर मानना जरूरी है तो आज के युग के अनुसार इस का वैज्ञानिक
व्याख्या होना चाहिए ?
उपर लिखा हुआ प्रश्न का उत्तर देते है कि पहले जो वास्तुकार होते थे वह उस समय का देश-काल-पात्र को लेकर पुस्तक लिखा करते थे ।
लेकिन आज के युग मे उस का १00% लागु करना कष्ट है । क्यूकि उस समय का देश-काल-पात्र अलग था और आज का देश-काल-पात्र अलग है । लेकिन जो नियम है
वह स्वास्वत है । वह कभि देश-काल-पात्र के साथ परिवर्तन नहि होता । हमारा काम है की उस नियम को देश-काल-पात्र के अनुसार व्यवहार मे लाना ।
तो हम हमारे प्राचिन वास्तुकार ने मन्दिर के पाश, राज रास्ता इत्यादि के पाश गृह वनाना मना किया गेया है उस का वैज्ञानिक कारण
है कि कोलाहल और अशान्त परिवेश मे गृह का वातावरण अशान्त और असुखमय लगता है ।
और शान्त और स्वच्छ परिवेश मे गृह का वातावरण शान्त और सुखमय लगता है ।
इस नियम को अगर आज के युग मे प्रयोग करेंग तो उस का व्याख्या इस
प्रकार होगा किसि भि कोलाहल और अशान्त परिवेश जेसे मन्दिर के पाश, वस स्टाण्ड, रेल्व स्टेसन, विमान
वन्दर, सिनिमा हल, कारखाना, आदि, राज रास्ता से अर्थात राष्ट का मुख्य रास्ता, राज्य
का मुख्य रास्ता, रेल रास्ता आदि, कोलाहल परिवेश अर्थात वाजर, पाठशाल आदि, अशान्त परिवेश अर्थात शम्शान, चिकिच्छालय, आदि के पाश गृह वनाना मना है ।
इस का विशृत वर्णन हम फिर कभि करेंगे।
२. निर्माण क्षेत्र स्थल का भौतिक स्थिति :- निर्माण क्षेत्र स्थल का भौतिक स्थिति का अर्थ है जहाँ हम गृह का निर्माण करते है उस निवास स्थान पर हम ज्यादा समय तक सुख सुविधा मै रहे पाएंगे । जैसे केसा है भूमि उर्वरता, रंग, गन्धादि का
परिक्षण, भूमि ठोस हे कि नहि उस का परिक्षण, उस स्थान मे जल कि मात्र केसा है उस
का परिक्षण, उस स्थान का वर्ष भर तापमान केसा रहता है उस का परिक्षण अर्थात थण्डा
है या गरम, वहाँ किस प्रकार के जीव, वृक्ष और द्रव्य मिलता है उस का परिक्षण, उस
स्थान का वर्षभर वायु का गति का परिक्षण इत्यादि ।
इस का विशृत वर्णन हम फिर कभि करेंगे।
३. पञ्च महाभूतों का गृह पर प्रभाव :- पृथिवि, जल, वायु, अग्नि और आकाश इसको पञ्च
महाभूत कहते है । इन पञ्च महाभूतों का गृह मे क्या प्रभाव होता है उस का परिक्षण । क्योकि इस का परिवार के आरोग्य के
साथ सिधा सम्पर्क है । गृह मे यदि पञ्च महाभूतों का उच्चित सम्नवय रहेगा तो गृह मे निवास करने वालो का
स्वस्थ ठिक रहेगा । इसलिए गृह मे उचित मात्रा मे वायु और सूर्य किरण आना चाहिए ।
इस का विशृत वर्णन हम फिर कभि करेंगे।
४. गृह निर्माण सौदर्य का परिरक्षण :- मानव हमेशा सुन्दरता का
पूजा करते आया है और हमेशा करता रहेगा । मानव क्य़ा पशु-पक्षि-कीट-पतंग सभि
सुन्दरता का पूजा करते है । तो मानव क्य़ो नहिं करेगा । क्यो कि हर सुन्दर वस्तु
सभि को आनन्द देता है । और सभि चाहते है सुन्दर दिखन के लिए, सुन्दर द्रव्य पाने
के लिए, सुन्दर गृह मे रहने के लेए । गृहादि को केसे सुन्दर वनाया जाये यह भि वास्तु विद्या का एक अङ्ग है । इसलिए गृह का आभन्तर और वाह्य
दोनो सुन्दर होना चाहिए । जिसको देखकर मन प्रफल्ल हो जाए ।
इस का विशृत वर्णन हम फिर कभि करेंगे।
५. जीवन कि आवश्यकता का गृह मे रूप परिकल्पना :- क्या आपने कभि मधुमक्षि
के छाता को देखा है । मधुमक्षि जव अपनि छाता तयार करता है तव अपनि रहने के लिए,
अपनि अण्डे के लिए, अपनि खाद्य के लिए, रानि मधुमक्षि के लिए इत्यादि अलग अलग शाला
वनते है । तो मानव अपने आवश्यकता के अनुसार गृह मे शाला का
परिकल्पना यथा स्नानागार, पाकशाला, शयनशाला, भजनशाला इत्यादि अलग अलग शालाएँ नहीं कर सकता। य़ह
प्रत्यक परिवार के लिए और परिवार के सद्रस्य के रुचि के अनुसार अलग अलग शाला वनाया
जाता है और कुच्छ कुच्छ शालाएँ सभि के लिए एक जेसा होता है।
इस का विशृत वर्णन हम फिर कभि करेंगे।
६. भू भौतिक शक्ति का गृह पर प्रभाव :- हम सभि जानते है प्रत्यक
पदार्थ मे कुच्छ शक्ति रहता है । उस तरहा हमारे पृथिवि और आकाशादि मे कुच्छ शक्तियां है । उस
मे पृथिवि के शक्ति का
परक्षण हम भूमि के उवरता के द्वारा जान सकते है । ओर ब्रह्माण्डय ऊर्जाओं को हम आयादि
साधन ओर सही दिशा के द्वारा गृह को ऊजावान कर सकते है । उससे हम गृह मे पृथिवि के शक्ति
ओर ब्रह्माण्डय ऊर्जाओं एकत्रित करके अपने जीवन को सफल कर सकते है ।
इस का विशृत वर्णन हम फिर कभि करंगे ।
७. देश-काल-पात्र का परिगणन :- जैसे सभि रोग के लिए एक
औषधि नहि होता है । अलग अलग रोग के लिए अलग अलग औषधि होता है । उस तरहा वास्तु के
नियम देश-काल-पात्र के अनुसार कुच्छ वदल
जाता है । जैसे गृह शीतप्रधान देश मे अलग होता है और ग्रीष्मप्रधान देश मे अलग होता है यह देश के अनुसार उदाहरण हुआ। 200 साल पहले गृह निर्माण द्रव्य अलग होता था । और
आज गृह निर्माण द्रव्य अलग है, यह काल के अनुसार उदाहरण हुआ । एक समान्य व्यक्ति के लिए गृह जैसे वनाया जाता है, एक धनि
व्यक्ति के लिए उससे कहि सुन्दर वनाया जाता है यह पात्र के अनुसार उदाहरण हुआ ।
यह देश-काल-पात्र का संक्षेप परिगणन हुआ इस का विशृत
वर्णन हम फिर कभि करंगे ।
८. भूगोल के उपर आकशिय ग्रहौं का प्रभाव :- भूमि पर जो कुच्छ शक्ति
ऊत्पन होता है उसका प्रतक्ष या परोक्ष सम्पर्क आकशिय ग्रहौं, नक्षत्रों आदि से है । इसको आधुनिक
विज्ञान भी मानता है । समुन्द्र के लहरे पर्णिमा के दिन वडा होता है और अमावास्या के
दिन छोटा होता है यह एक छोटा उदाहरण है भूगोल के उपर आकशिय ग्रहौं के प्रभाव का।
पृथिवि के कहाँ कहाँ पर कोन से ग्रह का प्रभाव है और कोन कोन सा राशि का प्रभाव है
वह हमारे ज्यतिष शास्त्र मे विस्तृत वर्णन है । सूर्य और अन्य ग्रहका विभिन्न
राशिपर क्या प्रभाव पडता है ? सूर्य के गतिका वास्तु परुष के गति साथ क्या
सम्पर्क है ? वास्तुपुरुष के सिर
ऐशन्य कौण मे क्यों है ? ईत्यादि सव भूगोल के उपर आकशिय ग्रहौं का प्रभाव के भितर आता
है ।
यह सव संक्षेप मे विचार हूआ इस का विशृत वर्णन हम फिर कभि करेंगे । मनुष्यादि
९. गृह मे निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर आकशिय ग्रहौं का
प्रभाव :- जव भूमि पर ग्रहौं, नक्षत्रों आदि के प्रतक्ष या परोक्ष
सम्पर्क होता है, तो भूमि पर निवास करने वाले जीव, मनुष्यादि पर भि प्रतक्ष या परोक्ष
सम्पर्क होता है । एक छोटा उदाहरण कहता
हूँ पूर्णिमा के दिन मानसिक रोगियों का पागलपन वढ जाता है । इस से पता चलता है कि ग्रहौं,
नक्षत्रों का मनुष्य के उपर सम्पर्क होता है । मनुष्य के उपर कोन से ग्रह का प्रभाव है और कोन कोन सा राशि का
प्रभाव है वह हमारे ज्यतिष शास्त्र मे विस्तृत वर्णन है ।
यह सव संक्षेप मे विचार हूआ इस का विशृत वर्णन हम फिर कभि करेंगे ।
प्रश्न उठता है कि एक
हि गृह का वास्तु एक होते हुए गृह मे निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का भाग्य अलग
अलग क्यो है ?
इस का उत्तर यह है
कि मनुष्य का जीवन को अगर वैल गाडि मान लिया जाए । तो इस वैल गाडि का दो पहया है
भाग्य और वास्तु । कर्म इस वैल गाडि का वाकि अन्श है । मन और बुद्धि इस गाडि का खिचने
के लिए दो वैल है । और मनुष्य का आत्मा इस वैल गाडि का चालक । अगर सव कच्छु ठिक है
तो गाडि आरम से चलता है । किन्तु दो पहयामें से एक पहया खराप हो जाए । या दो वैलमें
से एक ठिक से काम ना करे । या गाडि का वाकि अंश खराप हो जाए तो चालक गाडि को ठिक
से चला नहि पाता । इस प्रकार भाग्य, वास्तु, कर्म, मन और बुद्धि सव कुच्छ ठिक हे
तो मनुष्य का जीवन आरम से कटता है । अगर इसमे से एक ठिक नहि है तौ मनुष्य जीवन का ईह
लोक और पर लोक दोनो खराब हो जाता है ।
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