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मास के अनुसार गृहारंभ फल

मास ४ प्रकारके होते  हैं

१. चंद्र मास
२. सौर  मास
३. सावन मास
४. नक्षत्र मास

आज हम पंचांग के ऊपर चर्चा न करके चंद्र मास, सौरमास और चंद्रसौर मास  के अनुसार के अनुसार गृहारंभ का फल चर्चा  करेंगे।

चंद्रमास के अनुसार गृहारंभ फल :-

१. चैत्र : विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक के अनुसार चैत्र मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को व्याधि होता है । इस मत का समर्थन वास्तु गोपाल का लेखक और वास्तु प्रदीपका लेखक करते हैं। किन्तु ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपति जी ने इस मास मे गृह निर्माण करने का फल गृहपति को शोक होता हैं। इस मत का समर्थन शिल्पशास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा, ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक, शिल्पदीपक के लेखक, और वास्तुराजवल्लभ के लेखक मण्डन मिश्र करते हैं।

२. वैशाखशिल्प शास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा के अनुसार वैशाख मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को धन -रत्न की प्राप्ति होता है। इस मत का समर्थन ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपतिशिल्प दीपक के लेखक, विश्वकर्मा प्रकाश के लेखक, ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक, वास्तुराजवल्लभ के लेखक मण्डन मिश्र, वास्तु गोपाल के लेखक और वास्तु प्रदीप के लेखक करते हैं। किंतु ज्योतिष निर्बंध शास्त्रे के लेखक ने नारद मत का संग्रह किया है उस के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को पुत्र और आरोग्य प्राप्ति होता है ।

३. ज्येष्ठ: शिल्प शास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा के अनुसार ज्येष्ठ मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति का मृत्यु होता है। इस मत का समर्थन ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपति, विश्वकर्मा प्रकाश के लेखक, वास्तुराजवल्लभ के लेखक मण्डन मिश्र, वास्तु गोपाल के लेखक और वास्तु प्रदीप के लेखक करते है। किंतु शिल्प दीपक के लेखक और ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृह मे रहने वालो को पीड़ा होता है।

४. आषाढ़: शिल्प शास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा के अनुसार आषाढ मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को धन लाभ और पशुधन की वृद्धि होता है। किन्तु शिल्प दीपक के लेखक, ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक, ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपति, और वास्तुराजवल्लभ के लेखक मण्डन मिश्र के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति का पशुधन मे हानि होता है। परन्तु विश्वकर्मा प्रकाश के लेखक, वास्तु गोपाल के लेखक और वास्तु प्रदीप के लेखक अनुसार इस  मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को भृत्य और रत्नो की प्राप्ति होता है, किन्तु गृहपति का पशुधन की हानि होता हैं।

५. श्रावण: शिल्प शास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा के अनुसार श्रावण मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को भूमि  का लाभ होता है। शिल्प  दीपक के लेखक और ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक के अनुसार इस  मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को धन की वृद्धि होता है। किन्तु ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपति के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को द्रव्य की वृद्धि होता है। परन्तु विश्वकर्मा प्रकाश के लेखक और वास्तु  प्रदीप के लेखक के अनुसार इस  मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को मित्र का लाभ होता है। वास्तुराजवल्लभ के लेखक मण्डन मिश्र के अनुसार श्रावण मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को पशुधन की वृद्धि होता है। किन्तु ज्योतिष निर्बंध शास्त्रे के लेखक ने नारद मत और वशिष्ठ मतो का संग्रह किया है, उस के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को पुत्र और आरोग्य की प्राप्ति होता है। वास्तु गोपाल के लेखक ने इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति का मृत्यु  होता है।

६. भाद्रपद: शिल्प शास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा के अनुसार भाद्रपद मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति का हानि होता है। और इसका समर्थन  वास्तु गोपाल के लेखक करता है। किन्तु शिल्प दीपक के लेखक, ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक और वास्तुराजवल्लभ के लेखक मण्डन मिश्र के अनुसार गृह निर्माण फल शुन्य होता हैं। ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपति के मत मे इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति का विनाश होता हैं। परन्तु विश्वकर्मा प्रकाश के लेखक और वास्तु  प्रदीप के लेखक के अनुसार इस  मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति का मित्र की हानि होता हैं।

७. आश्विन: शिल्प शास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा के अनुसार मे आश्विन मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति पत्नीका  का नाश होता है। इस का समर्थन वास्तु गोपाल के लेखक और वास्तु प्रदीप के लेखक करता है। किन्तु शिल्प दीपक के लेखक और ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति के गृह मे कलह होता है। ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपति, वास्तुराजवल्लभ के लेखक मण्डन मिश्र ओर विश्वकर्मा प्रकाश के लेखक के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति के गृह मे युद्ध होता है। परन्तु ज्योतिष निर्बंध शास्त्रे के लेखक ने वशिष्ठ मत का संग्रह किया है, उस के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति का पुत्र -पौत्र -धन की वृद्धि होता हैं।

८. कार्त्तिक: शिल्प शास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा के अनुसार मे कार्त्तिक मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को बहुपत्नी प्राप्ति होता हैं। किन्तु शिल्प  दीपक के लेखक के अनुसार इस  मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति का नाश होता हैं। ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपति, वास्तुराजवल्लभ के लेखक मण्डन मिश्र और ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति की भृत्य का क्षय होता है। विश्वकर्मा प्रकाश के लेखक, वास्तु गोपाल के लेखक  और वास्तु प्रदीप के लेखक के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को धन - धान्य की लाभ होता है। परन्तु ज्योतिष निर्बंध शास्त्रे के लेखक ने नारद मत और वशिष्ठ मतो का संग्रह किया है, उस के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को पुत्र और आरोग्य प्राप्ति होता हैं।

९. मार्गशीष: शिल्प शास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा के अनुसार मे मार्गशीष मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को धन की प्राप्ति होता हैं। इसका समर्थन शिल्प दीपक के लेखक, ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपति, वास्तु प्रदीप के लेखक, ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक और वास्तु गोपाल के लेखक करता है। किन्तु विश्वकर्मा प्रकाश के लेखक के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति का धन की वृद्धि होता है। वास्तुराजवल्लभ के लेखक मण्डन मिश्र के अनुसार इस मास  गृह निर्माण करने से गृहपति को धान्य की लाभ होता है। किंतु ज्योतिष निर्बंध शास्त्रे के लेखक ने नारद मत का संग्रह किया है, उस के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को पुत्र और आरोग्य होता हैं।

१०. पौष: शिल्प शास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा के अनुसार मे पौष मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को चौर और तस्करों का भय होता है। इसका समर्थन विश्वकर्मा प्रकाश के लेखक, वास्तु प्रदीप के लेखक और  वास्तु गोपाल के लेखक करते है। किन्तु शिल्प दीपक के लेखक, ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपति और ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को गृह मे धन - सम्पदा का आगमन होता हैं। परन्तु वास्तुराजवल्लभ के लेखक मण्डन मिश्र के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को धान्य का लाभ होता हैं।

११. माघ: शिल्प शास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा के अनुसार मे माघ मास मे गृह निर्माण करने से अशुभ, गृहपति को भय और अग्नि का भय होता हैं। किन्तु शिल्प दीपक के लेखक, ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपति, ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक, विश्वकर्मा प्रकाश के लेखक, वास्तुराजवल्लभ  के  लेखक मण्डन मिश्र और वास्तु गोपाल के लेखक के अनुसार इस  मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को अग्नि का भय होता है। परन्तु वास्तु प्रदीप के  लेखक के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को बहुत लाभ किन्तु अग्नि भय होता हैं। ज्योतिष निर्बंध शास्त्रे के लेखक ने नारद मत और वशिष्ठ मतो का संग्रह किया है, उस के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को पुत्र और आराग्य प्राप्ति होता हैं।

१२. फाल्गुन:  शिल्प शास्त्र के लेखक बाउरी महाराणा के अनुसार मे फाल्गुन मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को स्वर्ण की प्राप्ति होता है। शिल्प दीपक के लेखक के अनुसार इस  मास मे गृह निर्माण करना श्रेष्ठ होता हैं। किन्तु ज्योतिष रत्नमाला के लेखक श्रीपति और वास्तुराजवल्लभ के लेखक मण्डन मिश्र के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को धन प्राप्ति होता हैं। ज्ञानप्रकाशदीपार्णव के लेखक के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को श्री प्राप्ति होता हैं। परन्तु विश्वकर्मा प्रकाश के लेखक के अनुसार इस  मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को लक्ष्मि और वंश मे वृद्धि होता हैं। वास्तु प्रदीप के लेखक अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को रत्न की प्राप्ति होता हैं। वास्तु गोपाल के लेखक के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को पुत्र का लाभ होता हैं। किन्तु ज्योतिष निर्बंध शास्त्रे के लेखक ने नारद मत और वशिष्ठ मतो का संग्रह किया है, उस के अनुसार इस मास मे गृह निर्माण करने से गृहपति को पुत्र और आरोग्य होता हैं।

सौरमास के अनुसार गृहारंभ फल:- 
अव हम सौर के अनुसार गृहारंभ का फल सौरमास २ प्रकार के होता है।

१. सायन
२. निरायन।

यहाँ पर निरायन सौरमास का गृहारंभ फल विचार किया गया है।

१. मेष : ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार ने मेष मास में गृह निर्माण का फल शुभ होता हैं। इस मत का समर्थन विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक करता है। किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में दक्षिण  या उत्तर दिशा का गृह निर्माण ही शुभ है। अर्थात गृहपति को मेष मास मे  दक्षिण  या उत्तर दिशा का गृह निर्माण करना चाहिए। 

२. वृष: ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार ने वृष मास में गृह निर्माण का फल गृहपति का धन वृद्धि होता हैं। इस मत का समर्थन विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक करता है। किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में दक्षिण या उत्तर दिशा का गृह निर्माण ही शुभ है। अर्थात गृहपति को वृष मास मे  दक्षिण  या उत्तर दिशा का गृह निर्माण करना चाहिए।

३. मिथुन: ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार ने मिथुन मास में गृह निर्माण का फल गृहपति का मृत्यु होता हैं। इस मत का समर्थन विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक करता है। किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में गृह निर्माण करना अशुभ होता है। 

४. कर्क: ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार ने कर्क मास में गृह निर्माण का फल शुभ होता हैं। इस मत का समर्थन विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक करता है। किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में पूर्व और पश्चिम दिशा का गृह निर्माण ही शुभ है। अर्थात गृहपति को कर्क मास मे  पूर्व और पश्चिम दिशा का गृह निर्माण करना चाहिए।

५. सिंह: ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार ने सिंह मास में गृह निर्माण का फल गृहपति का सेवकों की वृद्धि होता हैं। इस मत का समर्थन विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक करता है। किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में पूर्व और पश्चिम दिशा का गृह निर्माण ही शुभ है। अर्थात गृहपति को कर्क मास मे  पूर्व और पश्चिम दिशा का गृह निर्माण करना चाहिए।

६. कन्या: ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार ने कन्या मास में गृह निर्माण का फल गृहपति को रोग होता हैं। इस मत का समर्थन विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक करता है। किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में गृह निर्माण करना अशुभ होता है। 

७. तुला: ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार ने तुला मास में गृह निर्माण का फल  गृहपति का सौख्य होता हैं। इस मत का समर्थन विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक करता है।किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में  दक्षिण या उत्तर दिशा का गृह निर्माण ही शुभ है। अर्थात गृहपति को तुला मास मे  दक्षिण  या उत्तर दिशा का गृह निर्माण करना चाहिए।

८. वृश्चक: ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार  ने वृश्चक मास में गृह निर्माण का फल धनवृद्धि होता हैं। विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक कहता है  इस मास में गृह निर्माण का फल धन धान्य वृद्धि है। किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में  दक्षिण  या उत्तर दिशा का गृह निर्माण ही शुभ है। अर्थात गृहपति को वृश्चक मास मे  दक्षिण  या उत्तर दिशा का गृह निर्माण करना चाहिए।

९. धनु: ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार ने धनु मास में गृह निर्माण का फल गृहपति को महा हानि  होता हैं। विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक कहता है इस मास में गृह निर्माण का फल गृहपति को हानि है। किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में गृह निर्माण करना अशुभ होता है। 

१०. मकर: ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार ने मकर मास में गृह निर्माण का फल धन का आगमन होता हैं। इस मत का समर्थन विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक करता है।किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में पूर्व और पश्चिम दिशा का गृह निर्माण ही शुभ है। अर्थात गृहपति को मकर मास मे पूर्व और पश्चिम दिशा का गृह निर्माण करना चाहिए।

११. कुंभ: ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार ने कुंभ मास में गृह निर्माण का फल गृहपति को रत्न का लाभ होता हैं। इस मत का समर्थन विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक करता है। किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में पूर्व और पश्चिम दिशा का गृह निर्माण ही शुभ है। अर्थात गृहपति को कुंभ मास मे पूर्व और पश्चिम दिशा का गृह निर्माण करना चाहिए।

१२. मीन: ज्योतिष निर्बंध शास्त्र के लेखक ने अपनी पुस्तक मे कहा है की नारद मत के अनुसार ने मीन मास में गृह निर्माण का फल गृहपति को रोग होता हैं। इस मत का समर्थन विश्वकर्मा प्रकाश का लेखक करता है। किन्तु वास्तुराजवल्लभ का लेखक मण्डन मिश्र ने कहा है इस मास में गृह निर्माण करना अशुभ होता है।

सौरचंद्रमास के अनुसार गृहारंभ फल:-

प्रश्न उठता है की सौर मास गृहारंभ फल और चंद्र मास गृहारंभ फल का विचार हम पहले कर चुके है। तो फिर सौरचंद्र मास गृहारंभ फल का विचार अलग से विचार करने की क्या आवश्यकता है? इसका उत्तर भारतीय पचांग मे है। हम सब जानते है, सौरवर्ष का गणना लगभग स्थिर है। किन्तु चंद्रवर्ष का गणना अस्थिर है। उसको सौरवर्षके साथ समानता करने के लिये कभी १ मास जोड़ना होता है तो कभी १ मास घटना होता है। दूसरा एक और कारण भी है हमारे यहाँ चन्द्रमास का गणना २ तरहा से होता है। 

१. शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से गणना होता है।
२. कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से गणना होता है।

आचार्य रामदैवज्ञ अपनी पुस्तक मुहूर्त चिन्तामणि मे कहा है की यदि फाल्गुन मास मे रवि कुम्भ राशि मे है तो पूर्व और पश्चिम मुख का गृह निर्माण शुभ होता है। यदि  श्रावण फाल्गुन मास मे रवि सिंह राशि मे है तो भी पूर्व और पश्चिम मुख का गृह निर्माण शुभ होता है। उसी तरहा पौष मासमे रवि मकर राशि मे है तो भी पूर्व और पश्चिम मुख का गृह निर्माण शुभ होता है।

आचार्य रामदैवज्ञ का कहना है यदि वैशाख मास मे रवि मेष राशि मे हो या वृष राशि मे हो तो दक्षिण और उत्तर मुख का गृह निर्माण शुभ होता है। उसी तरहा मार्गशीष मास मे रवि तुला राशि मे हो या वृश्चिक राशि मे हो तो दक्षिण और उत्तर मुख का गृह निर्माण शुभ होता है।

वास्तुरत्नावली मे श्रीपति के मत के नाम पर जो कुछ दिया गया है वह श्रीपति के मुहूर्तरत्नावली मे नहीं है। यह श्रीपति के और किसी साहित्य मे हो यह अभी कह नहीं सकता।

वास्तुरत्नावली मे यह भी कहा गेया है की किसी किसी आचार्य का मत मे चैत्र मास मे रवि मेष राशि मे स्थित है तो किसी भी प्रकार के मुख का गृह निर्माण शुभ होता है। उसी तरहा ज्येष्ठ मास मे वृष राशि स्थित रवि, आषाढ मास मे कर्क राशि स्थित रवि, भाद्रपद मास मे सिंह राशि स्थित रवि, आश्विन मास मे तुला राशि स्थित रवि, कार्त्तिक मास मे वृश्चिक राशि स्थित रवि, पौष मास मे मकर राशि स्थित रवि और माघ मास मे कुम्भ राशि स्थित रवि मे भी किसी भी प्रकार के मुख का गृह निर्माण शुभ होता है।

किन्तु कार्त्तिक मास मे कन्या राशि स्थित रवि मे गृह निर्माण करना शुभ नही होता। उसी तरहा माघ मास मे धनु राशि स्थित रवि, चैत्र मास मे मीन राशि स्थित रवि, ज्येष्ठ मास मे मिथुन राशि स्थित रवि, आषाढ मास मे भी मिथुन राशि स्थित रवि, भाद्रपद मास मे कन्या राशि स्थित रवि, पौष मास मे धनु राशि स्थित रवि और फाल्गुन मास मे कुम्भ राशि स्थित रवि रहने से किसी भी प्रकार के मुख का गृह निर्माण अशुभ होता है।

इसलिए जिस स्थान मे जो पंचांग का व्यवहार होता है, उसमे कोनसा चंद्रमास व्यवहार होता है, उसका सौरवर्ष के साथ मिलकर गृहारंभ फल का विचार करना चाहिए। 
                                                           
                                      उपस्कारक ग्रंथ सूची
१. ज्ञानप्रकाशदीपार्णव वास्तुशास्त्र : संपादक प्रभाशंकर ओघोड़ भाई सोमपुरा, पालीताणा, संस्करण १९६४ ई.।
२. मुहूर्तचिंतामणि : श्रीरामाचार्य कृत, पंडित महीधर शर्मा कृत भाषा टीका, खेमराज श्रीकृष्णदास, मुम्बई, संस्करण २००४ ई.।
३. विश्वकर्मा प्रकाश: विश्वकर्माकृत, संपादक और अनुबाद मिहिरचंद खेमराज, श्रीकृष्णदास , मुम्बई, संस्करण २००४ ई.।
४.ज्योतिष निर्बंध: आनंद आश्रम संस्कृत ग्रंथ माला, पूना,(क्रम ८५ )संशोधक - रंगनाथ शास्त्री, और प्रकाशक विनायक गणेश आप्टे, संस्करण १९१९ ई.।
५. सम्पूर्ण वास्तुशास्त्र : डॉ. निमाई बेनर्जी और रमेशचंद्र दाश, ज्ञानयुग पब्लिकेशन, भुबनेश्वर, संस्करण २०१४ ई.।
६. ज्योतिषरत्नमाला : दैवज्ञ श्रीपतिभटाचार्य सम्पादक एबं व्याख्याकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगुनू, परिमल प्रकाशन, दिल्ही, संस्करण २००४ ई.।
७. शिल्पशास्त्र : बाउरी महाराणा कृत, सम्पादक एबं व्याख्याकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगुनू, चौखम्बा संस्कृत सीरीज, वाराणसी, संस्करण २००६ ई.।
८. वास्तुराजवल्लभ : श्रीमण्डन मिश्र, सम्पादक एबं व्याख्याकार स्व. श्री अनूप मिश्र और रामयत्न शर्मा, मास्टर खेलाडीलाल, वाराणसी, संस्करण १९९६ ई.।
९. वास्तुरत्नावली : श्री जीवनाथ शर्मा कृत, सम्पादक एबं व्याख्याकार श्री अच्युतानंद झा, चौखम्बा अमरभारती प्रकाशन ,वाराणसी,  संस्करण १९८१ ई.।

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अथ वर्णसमाम्नाय: प्रथमः अध्यायः प्रथमः पादः अथातो वर्णक्रमः ॥१॥ तत्र: स्वराः प्रथमम् ॥२॥ अ आ आ३ ॥ ३॥ इ ई ई३  ॥४॥ उ ऊ ऊ३ ॥५॥ ऋ ॠ ॠ३ ॥६॥  ऌ ॡ३  ॥७॥ अथ सन्ध्यक्षराणि ॥८॥ ए ए३ ॥९॥ ऐ ऐ३  ॥१०॥ ओ ओ३ ॥११॥ औ औ३  ॥१२॥ इति स्वराः  ॥१३॥ अथ व्यञ्जनानि  ॥१४॥ कखगघङा कवर्ग:  ॥१५॥ चछजझञा चवर्ग:  ॥१६॥ टठडढणा टवर्ग:  ॥१७॥ तथदधना तवर्ग:  ॥१८॥ पफबभमा पवर्ग:  ॥१९॥ इति स्पर्शा:   ॥२०॥ अथान्त:स्था:  ॥२१॥ यरलवा  ॥२२॥ अथोष्माण:  ॥२३॥ शषसहा  ॥२४॥ अथायोगवाहा:  ॥२५॥ अ: विसर्जनीय:  ॥२६॥ ᳲक जिह्वामुलीय:  ॥२७॥ ᳲप उपध्मानीय:  ॥२८॥ अ॰ अनुस्वार:  ॥२९॥ कुँ खुँ गुँ घुँ यमा:  ॥३०॥ एते त्रिषष्टिवर्णा:  ॥३१॥ हुँ नासिक्य:  ॥३२॥ दुःस्पृष्टः ळकारः एकेषाम् ॥३३॥ एते चतुर्षष्टि:  ॥३४॥ पञ्चषष्ठिः एकेषाम् ॥३५॥ द्वितीय: पाद: वर्ण: कारोत्तोर वर्णाख्य  ॥१॥ अकारव्यवेतो व्यञ्जनानाम् ॥२॥ न अयोगवाहा: ॥ ३॥ एफस्तु रस्य  ॥४॥ अकारो व्यञ्जनानाम् ॥५॥ निर्देश इतिना  ।॥६॥ स्वरैरपि...

वेदांग शिक्षा २

स्थानप्रकरणम् तावत्  तत्र स्थानम्।१। कण्ठ्याः  अकवर्गहविसर्जनीयाः ।२ एकेषां हविसर्जनियावुरस्याः ।३। जिह्व्यो जिह्वामूलीयः।४। ऋवर्ण कवर्गश्च जिह्व्यः एकेषाम् ।५। एकेषां कवर्गावर्णानुस्वारजिह्वामूलीया जिह्वया।६। एके सर्वमुखस्थानमवर्णमिति।७। एके कण्ठ्यानास्यमात्रानिति।८।  तालव्याः इचवर्गरशाः।९। मूर्धन्याः ऋटवर्गरषाः।१०। दुःस्पुष्टः अपि।११। रेफो दन्तमूलीस्थानमेकेषाम्।१२। दन्त्याः लृतवर्गलसाः।१३। एकेषां दन्तमूलस्तु तवर्गः।१४। दन्त्योष्ठ्यो वकारः।१५। एकेषाम् सृक्किणीस्थानम्।१६। ओष्ठ्याः उपूपध्मानीया।१७। नासिक्याः अनुस्वारयमाः।१८। नासिक्यः अपि।१९। एकेषां कण्ठ्यनासिक्यमनुस्वारम्।२०। एकेषां यमाश्च नासिक्य जिह्वामूलीयः।२१। कण्ठतालव्यौ ए ऐ।२२। कण्ठोष्ठ्यौ ओ औ।२३। स्वस्थाननासिकास्थानाः ङञणनमाः।२४। सन्ध्यक्षराणि द्विवर्णानि।२५। सरेफ ऋवर्णः। २६। सलकार लृवर्णः।२७। एवमेतानि स्थानानि।२७। करण प्रकारणम् करणं अपि। १। जिह्व्यतालव्यमूर्धन्यदन्त्यानां करणं जिह्वा। २। जिह्व्यानां जिह्वामूलेन। ३। तालव्यानां जिह्वामध्येन। ४। मूर्धन्यानां जिह्वोपाग्रेण। ५। करणं वा जिह्वाग्राधः। ६। दन्तानां जिह...